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शेर
जाती नहीं है सई रह-ए-आशिक़ी में पेश
जो थक के रह गया वही साबित-क़दम हुआ
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
शेर
सब पे रौशन है कि राह-ए-इश्क़ में मानिंद-ए-शम्अ
पाँव पर से हम ने क़ुर्बां रफ़्ता रफ़्ता सर किया
शाह नसीर
शेर
तुम आओ मर्ग-ए-शादी है न आओ मर्ग-ए-नाकामी
नज़र में अब रह-ए-मुल्क-ए-अदम यूँ भी है और यूँ भी
साइल देहलवी
शेर
राह आसाँ देख कर सब ख़ुश थे फिर मैं ने कहा
सोच लीजे एक अंदाज़-ए-नज़र मेरा भी है